खोया हुआ पल

rain and car lights

जब यहां अपनी बातें लिखने की शुरुआत की थी तब सोचा था की बहुत कुछ है मेरे अंदर, जो यहां शब्दों में ले आया जायेगा। फिर वक्त ने कब दिशा बदली और हुआ यू की मेरी बातें दूसरी तरफ होती चली.. मैं कब मुझसे से दूर नीकल गया पता ही नही चला। कुछ-कुछ लिखा भी है उन दिनों में और कुछ आज भी ड्राफ्ट में पडा सड रहा है।

आज की बात भी 2012 के पुराने ड्राफ्ट से जुडी है। यादें थोडी सी पुरानी है पर मेरे लिए जैसे कल ही की बात है। वैसे यहां सिर्फ गुजराती में लिखता हूं; लेकिन किसी से हिंदी में लिखने की बात हुई थी तो सोचा अलग भाषा में खुद को भी एक चान्स दिया जाए।

यह गुज़रे वक्त के कुछ पल की बात है। वैसे सिर्फ बात तो नही है, छोटी सी घटना है जो घट चुकी है। खोया हुआ लम्हा भी कह सकते है इसे। जीवन के मध्य दौर में ऐसे कुछ समय पहलें बीती जिंदगी की बात कौन सुनाता है भला! अभी तो बुढ्ढा होने में भी बहुत समय है यार। फिर भी आज लगता है जैसे मैं कोई दास्तां सुनाने जा रहा हूं। …

उम्र रही होगी 20 के आसपास की। बड़ी रौनक थी जिंदगी में; अब तक कुछ पाया न हो फिर भी जैसे कोई कमी ना हो वैसी वाली बेफिकर सी जिंदगी। मजेदार उमर होती है यह।

जून की बारिश का मौसम था और कॉलेज के नये सत्र की शुरुआत हुई थी अभी-अभी।

raining on the road

मौसम की शुरुआती बारिश अक्सर रोमांस जगाती है। उसके बाद तो सब कीचड़ ही दिखता है वैसे.. मेरे क़िस्से में बात कीचड़ की किचकिच तक नहीं पहुंची थी, मैं बारिश के रोमांस वाले दौर में था। उमर भी तो वही दौर से गुज़र रही थी।

दोपहर के बाद और शाम के पहले आती बारिश का नज़ारा बहुत सुंदर लगता है मुझे। धुप जैसे शरमाइ सी रहती है कही, दिखाई भी नही देती। बारिश की वजह से रोड, पैड, गाडीयां, मकान आदी सब कुछ धुला-धुला सा साफ और आकर्षक होता है। साइड में कही बैठे बैठे व्यस्त रोड से गुजरती गाडीयां और पीछे हवा संग उड़ती वो बुंदे देखना एक अच्छा टाइम-पास था मेरे लिये, अच्छा भी लगता था मुझे। आज भी लगता है।

4 बजे हमारी कॉलेज के क्लास ख़तम होते थे। उसके बाद मेरा मुख्य कार्यक्रम ‘घर जाना’ ही रहता। कभी कोई दोस्त ने रोक लीया हो और कुछ और वजह रही हो ऐसा बहुत कम रहा होगा। वैसे कोई खास दोस्त भी नही थे मेरे, जो सहाध्यायी थे वही समझो तो दोस्त।

आज यू ही कुछ लिखने का प्रयास करना था और अब किसी ने ट्रिगर दबाया हो वैसे मैं शुरु हो गया हूं। बातें लंबी हो रही है जानता हूं। पढनेवालें को यह सब बातें बचकानी भी लगती सकती है। खैर, मैं लिखुंगा। रोमांस और बारिश के चाहनेवालें हमेशा से ज्यादा रहे है। जिन्हें यह सब रोमांचित नही करता उन्हें दूर रहने की रिकवेस्ट करता हुं।

बस स्टैंड से थोड़ा सा दूर तय जगह थी मेरी, हमेशा वही खड़ा रहता। बस का इंतजार करता और वहीं से सबकुछ देखता भी रहता। आज कॉलेज से निकलने से पहले ही बारिश बंद हुई थी इसीलीये बूंदे अभी भी हवा में महसूस होती थी। हर तरफ सब भीगा हुआ था। मौसम मस्त था और मेरा मन भी।

आदतन मेरी नजर रोड पर टिकी थी और मैं अपने में खोया हुआ था की किसी ने मुझे मेरे नाम से पुकारा। नींद से अचानक आँख खुले और अपने को फिर कोई ख़्वाब में पाए वैसी हालत थी। मैं जैसे बिजली ने छू लीया हो वैसे सुन्न था। आवाज़ की दिशा में एक लड़की हाथ में छत्री लेकर खडी थी। यू अचानक इतने पास कोई आ जाये और हमें पता भी न चलें तो शॉक होना लाज़मी है; और दिखने में वो बेहद खुबसुरत भी थी। मुझे तो डबल शॉक लगा था।

girl with umbrella in colorful painting

वो कजराली आंखे और उसकी चमक, माथे पर छोटी सी लाल बिंदी, मुस्कुराते होठ, कुछ-कुछ भीगे से बाल…. हां, और भी बहुत कुछ याद आ रहा है लेकिन उसके कपड़े का रंग नही मिल रहा, पुरी याददाश्त सिर्फ नीले दुपट्टे से ही भरी पडी है।

मेरे वह कमीने क्लासमेट्स दूर से देख रहे थे हमें, शॉक उनको भी लगा था शायद। जिसे क्लास की एक भी लड़की भाव न देती हो उसके पास डायरेक्ट ऐसी कोई लड़की बात करने जायें तो उनका आंखे फाड देखना भी बनता था। ऐसी बातें जल्दी समझता हूं मैं।

लड़की ने बताया की वह मुझे जानती है। आज उसकी स्कूटी को किसी वजह से मिकैनिक के पास छोड़ना हुआ है तो अब उसे बस से घर जाना है। बस की यात्रा उसके लिये नयी है और जब हम दोनो की मंज़िल एक ही दिशा में है तो आज उसके लिए मैं साथी भी हूं और गाइड भी।

उसका यह कहने का अंदाज कुछ अलग था। उसने मेरा साथ नही मांगा था, खुद मुझे साथी के रुप में चुन लिया था।

वो ही सिर्फ बोल रही थी। मैं तो अभी भी शॉक से सुन्न था। सब सुन रहा था फिर भी कुछ रिएक्ट नही कर पा रहा था। पहली-बार इतनी खुबसुरत लड़की कॉन्फिडेंस के साथ मेरे पास आकर मुझे अपना साथी-गाइड बता रही थी। मैं तो जैसे अपनी आवारगी छुपाना चाहता था, उससे और सब से। खुद से भी। ये सब उसने नोटिस किया ही होगा।

एक बात बताउं?.. उसके खुबसुरत होने से ज्यादा उसने मुझे मेरे नाम से पुकारा वो बहुत अच्छा लगा था। अक्सर ऐसा होता है की किसी की एक बात दिल को छू लेती है और हम मन ही मन उसके हो जाते है।

बातों से आँखो का तालमेल मिलाकर कहने का वह अंदाज़ ग़जब था। शब्द इतने भी मीठें हो सकते है वो उस दिन जाना था। उसकी आंखे देखू या होंठ, दोनों में गजब नशा था। और उपर से रिमझिम बारिश। वो जैसा फिल्मों में होता है ना, वैसा ही परफेक्ट सीन। ओके.. इतना परफेक्ट भी नही था; थोड़ी सी बारिश हुई थी जो 1 मिनट भी न चली।

हमारी मुलाकात के 10 मिनट बाद बस आई होगी। बस की तरफ मुडते हुए उसको मैने अपने हाथ से संकेत दिया की हमें इस बस में जाना है। शब्द तो अभी भी बाहर नही आ रहे थे। मेरे पीछे थी वो तब पता नही क्यों बस की सीढ़ी चढ़ते वक्त मैने अपना हाथ सहारा देने के लिये आगे कर दिया, बिना सोचे ही, इडियट की तरह। सच में, इडियट ही था मैं।

हां, देख के अन-देखा किया गया था मेरे हाथ को। लड़कियाँ यह हुनर बखूबी जानती होती है। हैंडल पकड़कर बस के अंदर आते वक्त जब मेरी तरफ उसने नजर की तब अपनी वो हरकत के लिये शर्म सी महसूस हुई। बिना बोले वो बस के पीछे की तरफ सेकंड लास्ट की एक सिट पर बैठ गइ और साथ बैठने को मुझे आंख से ही इशारा किया। नजर मिलाना भी अब मुश्किल था, मैने शर्म के साथ उसकी आंखो का कहा मान लिया।

in a local bus

बस चल पडी। बहुत कम लोग थे बस में और जो थे वो सब अपने में व्यस्त थे। बाहर मंद-मंद बारिश फिर शुरु हो रही थी। खिड़की की तरफ वह बैठी थी और खुली खिड़की से हल्की सी बुंदे उसको छू रही थी। एक सिट में पास-पास बैठे मैं उसको और बारिश में भिगे बालों से आती सुगंध को महसूस कर रहा था। कुछ तरंगें उठ रही थी मेरे मन के अंदर जो शब्द से परे थी लेकिन अच्छा लग रहा था।

उसने कुछ पूछा और फिर धीरे धीरे हमारी बातें शुरु हुई थी शायद। मुझे हमारा बातें करना याद है, उसकी आंखो की हरकतें याद है; बुंदो का गिरना, हवा का बहना, उसका हसना, बालों का झटकना.. सब याद है लेकिन उसका वो खूबसूरत चेहरा याद नही है।

बहुत नादान था मैं उन दिनों में। यह प्रेम था या आकर्षण था या फिर कुछ और… आजतक समझ नही पाया हूँ। जो भी था वह वक्त अलौकिक था, अदभुत अहसास था और अविस्मरणीय था, है। उसके साथ होने में ही मैं अपने आप को खो चुका था। आज ऐसा लगता है जैसे साथ बिता वो लंबा वक्त एक पल में सिमट गया हो।

काश, कभी मिलने का एक मौका मिले तो उसमें फिर से खोना चाहता हूँ। वो मुझे कैसे जानती है यह पूछना उस वक्त दिमाग में क्यों नही आया?.. यह सवाल मैं आज भी खुद से करता हूं। और भी बहुत सवाल है मन में… उसे पुछना चाहता हूं। फिर एकबार वह पल को जीना चाहता हूँ। 

सबकुछ भुलाए उसके साथ होना चाहता हूँ। उसे अपना बनाने की ख़्वाहिश नही है, लेकिन कुछ वक्त के लिये ही सही.. मैं सिर्फ उसका होना चाहता हूं। ज़ीवन के वो खोये लम्हें को दोबारा पाना चाहता हूं।

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